पंकज-गोष्ठी न्यास (पंजी.) :

संताल-परगना का इतिहास लिखा जाना बाकी है।

मज्कूर आलम

बालक ज्योतीन्द्र से आचार्य पंकज तक की यात्रा, आंदोलनकारी पंकज की यात्रा, बताती है समय की गति को, सृष्टि के नियम को, उन्हें अपने अनुकूल करने की क्षमता को ! यह यात्रा हमें यह भी बताती है कि कैसे दृढ़ इच्छाशक्ति विकलांग को भी शेरपा बना सकती है ! कैसे चार आने के लिए नगरपालिका में झाड़ू लगाने को तैयार ज्योतींद्र, आचार्य पंकज बन सकता है ! कैसे अपनी बुभुक्षा को दबाकर व घाटवाली को लात मारकर पंकज वतन पर मर मिटने वाला सिपाही बन सकता है ! इतना ही नहीं हिन्दी साहित्य में उपेक्षित संताल परगना का नाम इतिहास में दर्ज करवा सकता है । यह सवाल किसी के भी जेहन को मथ सकता है कि क्या थे पंकज – महामानव ? नहीं, वे भी हाड़-मांस के पुतले थे, साधारण-सी जिंदगी जीने वाले। उनकी सादगी की कहानियां संताल-परगना के गांव-गांव में बिखरी पड़ी मिल जायेंगी, जिन्हें पिरोकर माला बनायी जा सकती है। वह भी भारतीय इतिहास के लिए अनमोल धरोहर होगी। आजादी की लड़ाई में अपने अद्भुत योगदान के लिए याद किए जाने वाले पंकज का जन्मदिन भी अविस्मरणीय दिन है, ´हूल-क्रांन्ति` दिवस अर्थात् 30 जून को। वैसे भी संताल-परगना के इतिहास विशेषज्ञों का मानना हैं कि आजादी की लड़ाई में इनके अवदानों की उचित समीक्षा नहीं हुई है। अंग्रेजपरस्त लेखकों ने इस क्षेत्र के आंदोलनकारियों का इतिहास लिखते वक्त जो कंजूसी की थी, उसी को बाद के लेखकों ने भी आगे बढ़ाया, जिसके चलते यहां की कई विभूतियों यथा – अलामत अली, सलामत अली, शेख हारो, चांद, भैरव जैसे कई आजादी के परवाने यहां तक कि सिदो-कान्हो की भी भूमिका इतिहास में ईमानदारी से नहीं हुई है। यह कसक न सिर्फ़ यहां के इतिहासकारों में, बल्कि यहां के हर आदमी में देखी जा सकती है। इन्हीं सबको लेकर यहां के इतिहास के शोधार्थियों ने कमर कस ली है। देवघर के एक शोधार्थी श्री उमेश कुमार तो इस पर शोध कर जल्द ही वतनपरस्त नाम से अपनी पुस्तक भी छपवाने जा रहे हैं। ऐसे में न जाने कितने इतिहास के जानकार कहते रहे हैं कि यहां नये सिरे से अनुसंधान कर कुछ लिखने की जरूरत महसूस नहीं की गयी, जो अंग्रेजपरस्त लेखकों ने लिख दिया उसे ही इतिहास मान लिया गया। यहां के कई अनछुए पहलुओं की ऐतिहासिक सत्यता की जांच ही नहीं की गयी। अगर इन तथ्यों का निष्पक्षता से मूल्यांकन किया जाता, तो राष्ट्रीय आंदोलन में अपनी भूमिका को लेकर कई अद्भुत शख्सियतें यहां से उभरकर सामने आतीं। उनमें से निश्चित रूप से एक नाम और ऊभरता। वह नाम होता आचार्य ज्योतीन्द्र प्रसाद झा ´पंकज` का !